अप्रत्याशित खुशी की झलक
"अप्रत्याशित खुशी की झलक"
जीवन में कुछ घटनाएं अप्रत्याशितरुप से आती हैं और स्मरणीय बन जाती हैं।
सन २००० की बात है। मैं उस समय ओएनजीसी के पूर्वोत्तर क्षेत्र यानि शिवसागर, असम के कृत्रिम उत्थोलन विभाग में काम कर रहा था। उन दिनों सुरक्षा सप्ताह जनवरी के महीने में ही मनाया जाता था। बाद में वही 'सुरक्षा पखवाड़ा' में परिवर्तित हो गया।
एक सुबह, विभागीय नियंत्रन अधिकारी ने मुझे बताया कि उस साल सुरक्षा सप्ताह (आभ्यंतरीन) खाद परिमार्जन विभाग में मनाया जाएगा। सुरक्षा सप्ताह के अंतिम समारोह को यादगार और फलप्रसु बनाने के लिए, और सभी कर्मचारियों के बीच सुरक्षा के प्रति जागरुकता फ़ैलाने के लिए एक नाटक आयोजित करने का विचार किया जा रहा था। खाद परिमार्जन के महा-प्रबंधक महोदय ने इसका उत्तरदायित्व हमें दिया था।
पहले मैं सुरक्षा के विषय पर लिखित नाट्य रचना ढूढ़ने में लग गया। वह बात अलग है की मैं काफी समय तक असफल रहा। और तो और, लोग नाटक में हिस्सा लेने सेे भी झिझक रहे थे। अंत में, मैंने स्वयं ही एक नाटक लिखे डाला, जिसका शीर्षक है "अंगीकार"।
नाटक लिख तो लिया, पर नाटक में अभिनय करने के लिए लोग तैयार नहीं हो रहे थे। किसी को शर्म आ रही था, तो किसी को मंच पर बोलने का डर था। आखिर जैसे-तैसे, किसी तरह मैंने चार सहकर्मियों को नाटक में अभिनय करने के लिये मना लिया था।
नाटक का अभ्यास करना ज़रूरी था। इसलिए शाम को हम पाँचों ऑयल फील्ड से वापस आकर आफिसार्स क्लब के प्रेक्षागृह में अभ्यास के लिये एकत्रित हुए। परंतु अभ्यास के पहले दिन ज़्यादा आगे नहीं बढ़ पाए। पाँच दिन में नाटक मंचस्थ करना था, और मेरे नाटक में एक भी ऐसा कलाकार नहीं था जिस पर थोड़ा सा भरोसा कर सकूँ। सहजत: दूसरा दिन भी उतना ख़ास नहीं गया।
इधर सभी लोग हमारे नाटक को लेकर काफी उत्सुक थे। सभी के अपेक्षाओं का वज़न मेरे नाटक के ढीले ढांचे पर भारी पड़ रहा था। पर मन इतनी जल्दी हार मानने के लिए तैयार नहीं था। तीसरे दिन मैंने "चक दे इंडिया" के शाहरूख खान की तरह "७० मिनिट" के जैसा एक भाषण दिया। हालांकि मेरा भाषण इतना तोड़ तो नहीं था, पर मेरे सभी साथी प्रभावित ज़रुर हुए। हम सभी अभिनय के प्रति थोड़ा सीरियस हुए और काफी श्रम के पश्चात, सबने अपना अपना संलाप याद कर लिया। संलाप के बाद दो और अहम एवं कठिन पड़ाव अभी बाकी थे; डायलॉग डिलीवरी और अंग संचालन।
उन चारों के अभिनय में अनुभव ना होने के कारण, ये दो पड़ाव मेरे लिए बड़े प्रत्याह्वान बन गए थे। फिर मुझे एक चरित्र स्वयम् निभाने का निर्णय लेना पड़ा ताकि मंच पर बाकी चारो का आत्मविश्वास बढ़ा सकू। पर जैसा सोचा था , वैसा कुछ भी नहीं हुआ। मेरे नाटक मू ज़्यादा कुछ असर नही हो रहा था। मेरी हालत 'लगान' फिल्म के भुवन (आमीर खान) की तरह हो चुकी थी। मैं हताश हो गया और मेरी इस हताशा को देखकर वे लोग अभिनय को साकार करने का प्रण ले चुके थे। सब आकर बोले "आप जैसा बतायेंगे हम चारों वैसा ही करेंगे। आप हमे सीखाओ। ज़रुरत पड़ेगी तो सारी रात अभ्यास कर लेंगे।"
उन चारो की उत्साह और उद्दीपना देख कर मेरा गला भर आया। एक नई उत्साह के साथ हमने फिर से अभ्यास शुरू किया। अगले दो दिन शनिवार और रविवार कोे "फुल डे" रिहर्सल करवाया। दोपहर का खाना खाने कोई भी घर नही गया।
नाटक के दिन ओ.एन.जी.सी के सभी बड़े अधिकारी समारोह में आये थेे। असम सरकार के एक मंत्री और दो विधायक भी शामिल थे। हम ने उनके समक्ष नाटक मंच पर प्रस्तुत किया। सभी ने अपने अपने चरित्र को उचित न्याय करते हुए निभाया और नाटक में सुरक्षा के संदेश को लोगो तक पहुचाने में हमने अपना 100% दिया।
मंत्री महोदय और असम परिसम्पत्ति के कार्यवाही निर्देशक (इ.डी.) ने नाटक की खूब प्रशंसा की। कार्यवाही निर्देशक को जब पता चला की सारे सदस्य नाटक पहली बार कर रहे थे तब उन्होंने सबकी भारी प्रशंसा की।
अगले दिन सुबह आफिस पहुंचते ही महा-प्रवंधक महोदय ने बोला, "मजुमदार, ईडी सर,ओ तुमसे मिलना चाहते है। तुम एक गाड़ी लेकर नाज़िरा चले जाओ। एम.एस.जी. को पता है। तुम सीधे सर के कैबिन में चले जाना।"
इ.डी सर ने मुझे देखते ही कहा,
"आप लोगो का नाटक हमे पसंद आया। नाटक आपने लिखा और निर्देशित भी किया। लेकिन आपको नाटक में छोटे-मोटे फेर बदल करने होंगे। उसके अलावा आप लोगों का नाटक काफी उम्दा था।" लगभग आधे घंटे के बात-चीत से इ.डी सर के नाटक के प्रति प्रेम और नाटक के इतिहास का ज्ञान देखकर मैं आश्चर्यचकित हो गया। उस दिन की सबसे अदभुत बात यह थी कि सात दिन बाद होने वाले "नॉर्थ ईस्ट कोल माइनस् सेफटी वीक सेलिब्रेशन" समारोह में आयोजित सुरक्षा नाटक प्रतियोगिता में हमारे नाटक को निर्वाचित किया गया।
नाजि़रा से वापस आकर जब मैंने ये खुश खबरी अपने साथियों को सुनाया तब वे सारे खुशी से झुम उठे। "नॉर्थ ईस्ट कोल माइनस् सेफटी वीक सेलिब्रेशन समारोह", पुर्वोत्तर क्षेत्र के तेल ओर कोयला खदान से जुड़े हुए सभी प्रतिष्ठान एकत्रित होकर मनाते हैं।
ऑयल ईण्डिया लिमिटेड (दुलीयाजान), कोल ईण्डिया लिमिटेड (मार्घेरिटा), ईण्डियन ऑयल कार्पोरेशन (डिगबई) , धनशीरी वैली प्राजेक्ट (डिभिपी-जोरहाट) आदि प्रतिष्ठान बारी बारी से हर साल इसे मनाते थे। उसी सुरक्षा समारोह मे सुरक्षा बिषय पर एक नाट्य प्रतियोगिता आयोजित किया जाता है। पिछले कई सालों से ओ.एन.जी.सी कुछ नहीं जीत रही थी ।
ऐसे गौरवपूर्ण समारोह में भाग लेने के सौभाग्य से हमारा नाट्य दल सन्मानित और उत्साहितबोध हो गया था। इस दौरान मैंने नाटक में काफी कुछ परिवर्तन एवम् परिबर्धन कर लिया।
पिछले बार की तरह, इस बार भी अभ्यास के लिए हमारे पास सिर्फ पाँच दिन थे। लेकिन इस बार हमारे नाट्यदल के सभी सदस्यों का आत्मविश्वास,
निष्ठा ओर एकाग्रता अविचल था। हमने अभ्यास में कोई कमी नही रखी थी। मैंने अपनी छात्रावस्था में प्राप्त नाटक का सारा अनुभव और ज्ञान हमारे नाटक में संचारित करने का प्रयत्न किया।
इसी दौरान इ.डी. सर हमारा अभ्यास देखने भी आए थे। अभ्यास देखने के बाद उन्होने सकारात्मक आलोचना की और कुछ छोटे-मोटे परिवर्तनों की सलाह दी। ई.डी. सर के भागीदारी और प्रेरणा से हमारा आत्मविश्वास और बढ़ गया था।
समारोह के दिन हम सब एक श्वीफ्ट बस में, और नाटक के सेटिंगस् एक ट्रक में लेकर, ऑयल ईण्डिया लिमिटेड, दुलीयाजान के लिए रवाना हो गए। शाम तक ओ.एन.जी.सी के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ ई.डी सर भी समारोह स्थल पर पधारे। नाटक प्रतियोगिता शुरू होने से पहले इ.डी. सर ग्रीन रुम मे आकर सारे सदस्यों से गले मिलकर शूभकामनाएं देकर गए।
असम प्राचीन काल से ही नाट्यचर्चा के लिए ख्यातिमान है। १४ शतिका मे असम के संत महापुरुष शंकरदेव ने नाठ्य रचनाए मंचस्थ करके नाट्यक्षेत्र मे अभूतपूर्ब योगदान दिया था। उसी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए आजतक नाटक की चर्चा भारी रुप में की जाती है। इसलिए उस दिन समारोह में, एक से बढ़कर एक नाटक देखने का सौभाग्य मिला। कुल मिलाकर आठ नाट्यदल ने अंशग्रहन किया था। प्रतियोगिता रात १० बजे खतम हुआ। हमारे नाटक के खत्म होने के बाद अंत मे बजती हुई तालियों की गूंजो से लगा कि दर्शको को बहुत पसंद आया होगा।
प्रतियोगिता के परिणाम से पहले हम सभी ई.डी सर के साथ प्रेक्षागृह में बैठे थे। जीतना हमारे लिए उतना महत्वपूर्ण नहीं था, जितना की मंच पर हमारा पूरे सामर्थ्य से अपना शत् प्रतिशत देना था। एक बेचैनी सी हो रही थी। कहीं हम और अच्छा तो नहीं कर सकते थे? कहीं स्क्रिप्ट में कोई कमी तो नहीं रह गई थी?
घोषक प्रतियोगिता का परिणाम बड़ी चतुरता और आकर्षणीय तरीके से घोषित कर रहा था। सबसे पहले तृतीय स्थान, फिर द्वितीय स्थान...
पहले स्थान पर आते-आते समय थम सा गया था और हृदय की धड़कन तेज़ हो गई थी। सभी की दृष्टि घोषक पर केंद्रित थी। मैंने स्वयं को सांत्वना दी कि चाहे परिणाम कुछ भी घोषित हो, हमने अवश्य अपना शत् प्रतिशत इस नाटक में दिया था। इतने विख्यात समारोह का हिस्सा बनना हमारे लिए खुशी की बात थी। पर प्रथम स्थान की घोषणा न होने तक क्या मैं खुश था? बेचैनी के शिखर से उमड़ती हुई मेरी धड़कनों की गूंज मुझे कानों तक सुनाई दे रही थी।
प्रथम स्थान की घोषणा हुई। कुछ पल बीते। तब तक हम सब एकसाथ चौंक कर बैठे हुए थे। घोषक ने कहाँ था, "बेस्ट ड्रामा आवार्ड अब दिस इयार गोज़ टू "अंगीकार"- ए ड्रामा पारफर्मड् बाई टीम ओ.एन.जी.सी, नाजिरा।"
उसी रात हम सभी 'ओएनजीसीयन' तीन बार और चौकें, जब बेस्ट डाइरेक्टर, बेस्ट स्क्रीप्ट और बेस्ट एक्टर का सम्मान भी हमें ही मिला था। हम सब खुशी से झूम उठे। इ.डी. सर भी खुशी में डान्स करने लगे थे। उनको डान्स करते देख हम भी डांस करने उतर पड़े। कुछ पलों के लिए हम सभी बच्चे जैसे बन गये थे। बेचैनी अब नहीं रही। धड़कने स्थिर हो गई। इस बार हमारे उल्लास और खुशियां गूंज रही थी।
पुरस्कार लेकर देर रात तक बस से घर लौटते समय भी हम खुश थे और गाना गाते-गाते सुबह घर पहुचे।
अगले दिन शाम को इ.डी सर ने हमारे जीत को मनाने के लिए नाज़िरा ऑफिसर्स क्लब में एक बड़ी पार्टी का आयोजन किया।
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