अविस्मरणीय पहली हवाई यात्रा और समुद्र दर्शन

 

“अविस्मरणीय पहली हवाई यात्रा और समुद्र दर्शन*

 

"सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो, सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो।"

 

जीवन में यात्रा करना एक अलग ही सुंदर अनुभव है। जीवन में आगे बढ़ने के लिए यात्रा करना ज़रूरी है।

 

आज जिस यात्रा का संस्मरण करने जा रहा हूं, वह यात्रा मेरे लिए सदेव महत्वपूर्ण रहेगा।

 

इस यात्रा की शुरुआत मेरी बड़ी दीदी की शादी से शुरू हुई थी। दीदी की शादी समारोह में शामिल होने कोलकाता से मेरे कजिन अनिल भैया आये थे। कोलकाता में पले-बढ़े अनिल भैया भारतीय खाद्य निगम के 

अधिकारी थे। उन दिनों उनकी पोस्टिंग भूवनेश्वर, उड़िसा में थी। शादी समारोह के बाद भैया कुछ दिन रुके थे और उनको मैंने गुवाहाटी की सारी ऐतिहासिक महत्वपूर्ण जगहों, जैसे कामाख्या मंदिर, वशिष्ठ मुनि का आश्रम, अश्वक्लांत, चिड़ियाघर, वालाजी मंदिर और मेघालय राज्य स्थित शिलांग, चेरापूंजी इत्यादि की  सैर कराई। 

 

शायद मेरे निशुल्क 'टूरिस्ट गाइड' की सेवा से प्रभावित होकर, जाते-जाते भैया ने मुझे बताया, "तुम्हारे मेट्रिक परीक्षा खत्म होते ही मेरे पास जाना, तुम्हें कोलकाता और पुरी का समुंदर दिखाऊंगा।"

 

अनिल भैया के जाने के बाद मैं इधर पढ़ाई में व्यस्त हो गया और धीरे धीरे दिन ढलते गए। मैंने मन से अनिल भैया का प्रस्ताव प्रायः भुला दिया था। परंतु अनिल भैया नहीं भुले थे।

 

मेरी परीक्षा के आखिरी दिन भैया ने पापा को फ़ोन किया और छुट्टी मनाने के लिए मुझे कोलकाता भेजने का आग्रह किया। शुरू शुरू में "इतना दूर अकेले कैसे जायेगा" जैसी बातों को लेकर मम्मी और पापा के बीच मतभेद हुई। पर अंत में मुझे हवाई जहाज़ से भेजने का निर्णय ले ही लिया। अगले दिन पापा ने मेरे लिए इंडियन एयरलाइन्स की एक टिकट गुवाहाटी से कोलकाता के लिए बुक करवाई।

 

हम टैक्सी से गुवाहाटी एयरपोर्ट पहुंचे। मैं इस यात्रा को लेकर काफी उत्सुक था इसलिए क्योंकि यह मेरी जीवन की पहली हवाई यात्रा थी।

 

सुरक्षा जांच के बाद, विमान ने उड़ान भरी। विमान ने रन-वे पर दौड़ना प्रारम्भ किया तब बहुत तेज़ आवाज आई।  कुछ ही समय में मैं आसमान में था। विमान के उड़ने के दौरान मुझे कई बार चक्कर आई और मेरे कान सुन्न हो गये। किन्तु कुछ देर बाद सब कुछ पूरी तरह सामान्य हुआ।

 

प्लेन हवा से बातें कर रहा था। मैंने पास की खिड़की से नीचे देखा तो शहर टापुओं की तरह और बड़ी बड़ी ईमारते खिलौने की तरह दिख रही थी। यह द्रश्य मेरे लिए बहुत खास और अद्भूत था।

 

जब हमारा प्लेन असम के पर्वतीय इलाकों पर उड़ान भर रहा था तब दृश्यावली और भी अधिक आकर्षक एवं मनमोहक हो गयी। बड़े बड़े जंगल नदियों के ऊपर से गुजरने पर वे बेहद छोटे छोटे नजर रहे थे। विशाल ब्रह्मपुत्र नदी की धारा भी एक छोटे झरने की तरह लग रही थी।गुवाहाटी से कोलकाता के आकाश मार्ग में कुछ हिस्सा बांग्लादेश के उपर से भी आता है। मैं यह नजारा देख ही रहा था कि विमान परिचारिका ने मुझे चाय नाश्ता दिया।

 

मैंने नाश्ता किया। मैं बहुत खुश था। प्लेन में सवार सभी यात्री प्रसन्न नज़र रहे थे। कुछ लोग सो रहे थे। कोई कुछ पढ़ रहा था तो कोई वाकमेन में गाना सुन रहा था, तो और कोई बातचीत में मशगुल थे। इस तरह प्लेन में बैठे सभी यात्री किसी किसी रूप में व्यस्त थे।  

 

आखिरकार हमारा प्लेन लगभग डेढ़ बजे के आसपास कोलकाता पहुंचा। उस समय वहां का आकाश अप्रैल महीने का धुप से नहाया हुआ था।

 

एयर पोर्ट के बाहर अनिल भैया मेरी स्वागत करने आए थे। दमदम एयरपोर्ट के बाहर से बस पकड़कर उनके घर के लिए हम चल दिए।

 

अगले तीन दिन में भैया के साथ कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल हॉल, दक्षिणेश्वर काली मंदिर, बेलूर मठ, बिरला प्लानोटरियाम, मैदान आदि सारे ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों का दर्शन किया। लोकेल ट्रेन और भुतल में चलने वाले मेट्रो रेल का भी अलग मज़ा है। पार्क स्ट्रीट में मैंने पहली बार फुचका (पानी-पुरी) खाया।

 

कोलकाता में ढेर सारी मस्ती की और लगभग सारे पर्यटन स्थलों का दर्शन किया। अगले दिन हमें पूरी की समुद्र तट बुला रही थी। 

 

शाम के समय की ट्रेन थी। हावड़ा रेलवे स्टेशन से पुरी एक्सप्रेस में हम चढ़े। धीरे धीरे ट्रेन स्पीड पकड़ने लगी। हरे हरे खेत के मनोरम द्रश्य देखते हुए हम मगन होकर जा रहे थे।

 

कुछ ही समय में बाहर अंधकार हो गया। समय काटने के लिए हमने अंताक्षरी खेला तथा भैया ने कुछ चुटकले भी सुनाये। बातों ही बातों में वक्त कैसे गुज़र गया पता ही नही चला। हम सो गए थे। अगले दिन सुबह हम पूरी रेलवे स्टेशन पहुच गए थे। हमने ऑटो लिया और चक्रतीर्थ रोड पहुंचे जो समुद्र के लगभग किनारेकिनारे से गुजरती है। हम जगन्नाथ मंदिर के पास में स्थित एक गेस्ट हाउस की तरफ रवाना हुए।

 

हमारे कमरे की खिड़की, होटल की बालकनी और छत से समुद्र की गरजती लहरों का शोर सुनाई दे रहा था जिसने हमारी सारी थकान मिटा दी।

 

गेस्ट हाउस से लगभग 100 मीटर चलने के बाद समुद्र का तट शुरु हो चुका था। समुद्र का इलाका यानी बालू। बालू में फिसलते पैरों के साथ चलते हुए सामने की ओर समुद्री लहरों को देखना एक रोमांचक अनुभव था। बालू में फिसलते हुए पानी के अथाह स्रोत के किनारे पहुंचकर, चप्पल किनारे फेंक लहरों के बीच घुस पड़े।

 

बच्चों की तरह उछलते कूदते हुए काफी देर तक हमने समुद्री नज़ारों का आनन्द लिया। 

 

हमारा वह दिन पूरी के समुद्र तट को ही समर्पित था। शाम को जगन्नाथ मंदिर दर्शन और आरती करके जल्दी सो गए। 

 

अगले दो दिन में हमने पूरी के आसपास स्थित कोनार्क के सूर्य मंदिर, गुंडिचा मंदिर, चंन्द्रभागा, कलिंग, धवल गिरि आदि सारे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों का भ्रमण किया और भुवनेश्वर ओर चले आए  

 

भुवनेश्वर में अनिल भैया अपनी सरकारी आवास में रहते थे। अगले दो दिन में भुवनेश्वर शहर में कुछ खरीदारी करी। नंदनकानन चिड़ियाघर में दुर्लभ सफेद बाघ देखने को मिला। भव्य लिंगराज मंदिर के भी दर्शन किए। लिंगराज मंदिर में बंगला चलचित्र के सुप्रसिद्ध अभिनेत्री देवश्री राय जी को देखा। मैंने उनका आटोग्राफ लिया और साथ में तस्वीरें भी खिंचवाई। उन दिनों में, देवश्री राय महाभारत सिरियल में माता सत्यवती के किरदार में आती थी।

 

भुवनेश्वर में चार दिन बिताने के बाद अनिल भैया को कृतज्ञता पूर्वक बाई बाई करते हुए गुवाहाटी के लिए एयर इंडिया के फ्लाइट में बैठ गया। समुद्री तट के नीली जल राशि का जादू और एक सुखद अनुभव के आवेश में कब आंख लग गई पता ही नहीं चला। गुवाहाटी एयरपोर्ट में आंख खुली तो सबकुछ सपना जैसा लग रहा था।

 

यह यात्रा मेरे लिए अविस्मरणीय था। बहुत कुछ नये आयामों से परिचित होने का अवसर मिला। इस यात्रा से, मेरे किशोरावस्था के मन की जिज्ञासा और मन के अंदर बंधे उत्सुकता को एक नया दृष्टिकोण प्राप्त हुआ, जिसका प्रभाव आज भी मेरे जीवन में हैं।

                 

               

 

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