हिंदी हमारी स्वाभिमान-कविता
हिंदी कविता लेखन प्रतियोगिता- 2021
शीर्षक: हिंदी हमारी स्वाभिमान
प्राचीन भाषा संस्कृत माँ की कोख से जन्म लेकर,
देव भाषा का उत्तराधिकार लिए,
अपने हृदय को विस्तृत करके,
तत्सम से तद्भव और देशी से विदेशी रंगों को अपनाकर,
जिसने काल को जीत लिया है
ऐसी कालजयी भाषा हिंदी हैं।
हिंदी के मिठास से भरे हैं अधर अधरा,
हिंदुस्तान के भाव हो तुम और एकता का परंपरा।
हिंदुस्तान की आवाज हो तुम।
तुमसे ही सभी हुए साक्षर,
राष्ट्र की परिभाषा हो तुम,
शब्दों के विशाल महासागर।
सागर में मिलती हुई, सब धाराओं की संगम हो तुम,
पर्वत से बहती वारिधि का गहरा
सरोवर हो तुम।
एक डोर हो जो, एक सुत्र में सबको बांधती हो।
जिसने पूरे देश को जोड़े रखा है,
वो मजबूत धागा हो तुम।
तुम वह हो, जिसमें जीवन साज पे संगत देते,
जिसके सहारे, भाव नदी का अमृत पीते।
तुम वह हो जिसके सहारे, बचपन खेले और बढ़े,
जिसके ज़रिए हम सारे यौवन के पाठ पढ़े।
तुम वह हो, जिसमें हम गाते हंसते हैं
जिसके शब्द की माला पिरो कर
सुख दुख की गाथा रचते हैं।
कभी सपनाते, कभी अलसाते तुम ही
जिससे अपनी मन की कथा सुनाते हैं।
गंगा, गोदावरी, नर्मदा,
ब्रह्मपुत्र, कावेरी ओर अलकनंदा
धाराओं को साथ मिलाती हो,
पूरव से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण को जोड़ती,
जादुई सेतु बनाती हो।
हिन्दुस्तान की गौरवगाथा है हिंदी
एकता की अनुपम परम्परा है हिंदी
तुम हमारी चेतना, तुम वाणी का शुभ वरदान,
तुम हमारी वर्तनी और हमारा व्याकरण,
तुम हमारी संस्कृति और हमारा आचरण,
तुम हमारी वेदना, तुम हमारा गान।
तुमपे हमें गर्व है, हैं अभिमान।
लेखक:
संजीव मजुमदार
उप-महाप्रवंधक
(उत्पादन)
मुख्य अधिकारी, कृत्रिम
उत्तोलन विभाग
राजामुंदरी परिसम्पत्ति
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