भ्रष्टाचार का चक्रव्यूह - एक नाटक
भ्रष्टाचार का
चक्रव्यूह - एक
नाटक
रचना:
संजीव पी मजुमदार
उप-महा प्रवंधक (उत्पादन)
मुख्य प्रभारी, कृत्रिम उत्थोलन विभाग, राजामुन्द्री परिसम्पति।
घोषक:
नमस्कार। भ्रष्टाचार एक
विश्वव्यापी तथा
परंपरागत समस्या
है।
चाणक्य
का
कहना
था,"कर्मचारियों द्वारा सार्वजनिक धन
का
दूरुपयोग ना
करना
उसी
तरह
असंभव
है,
जिस
तरह
की
जीभ
पर
रखे
शहद
को
ना
चखना।"
आइये
आज
हम
देखते
हैं
कि
किस
तरह
से
भ्रष्टाचार, एक
संक्रामक व्याधि
की
तरह
समाज
के
अधिकांश भाग
को
अपनी
चपेट
में
ले
चुकी
है।
(बेकग्राउन्ड में
गाना
बजेगा
और
गाना
खत्म
होते
ही
मंच
पर
प्रथम
दृश्य
शुरू
होगा।)
हम
लोगों
को
समझ
सको
तो
समझो
दिलबर
जानी,
जितना
भी
तुम
समझोगे
उतनी
होगी
हैरानी।
अपनी
छतरी
तुमको
दे
दे
कभी
जो
बरसे
पानी,
कभी
नए
पैकट
में
बेचे
तुमको
चीज़
पुरानी।
फिर
भी
दिल
है
हिन्दुस्तानी.....
प्रथम दृश्य:
(शहरी विकास
विभाग
के
अधिकारी शर्माजी का
कार्यालय)
शर्माजी: (फ़ोन
पर)
ठीक
है
प्रिंसिपल साहब।
आपका
दस
मंज़िला मकान
का
पर्मिशन हो
जाएगा।
आप
केवल
मिठाई
का
डिब्बा
लाना
मत
भूलना।
ओके,
आप...आप भेज दीजिए।
(फोन रखके)
चुड़ामनि! ओ
चुड़ामनि!
चुड़ामनि: जी
सर
जी?
शर्माजी: चुड़ामनि, वह
प्रिंसिपल अहमदजी
का,
पर्मिशन वाला
फाइल
कहा
रखा
तुमने?
(चुड़ामनि शर्माजी के
साथ
फाइल
ढुढ़ने
लगता
है)
शर्माजी: चुड़ामनि, क्या
फ़ाइल
तूने
यहीं
रखा
था?
चुड़ामनि: नहीं...नहीं रखा।
शर्माजी: नहीं
रखा
तो
यहां
काहे
खोज
रहे
हो?!
चुड़ामनि: आप
यहां
खोज
रहे
थे,
इसलिए
मैं
भी
खोजने
लगा।
शर्माजी: धत्त
बुरबक!
लगता
हैं
वो
फ़ाइल
साहब
के
टेबल
पर
होगें।
चुड़ामनि: मैं
अभी
जाकर
ले
आता
हूं।
शर्माजी: फाइल
तुमने
वहां
रखे
है
ना?
चुड़ामनि: नहीं।
शर्माजी: तो
क्या
लेने
जा
रहे
हो?
चुड़ामनि: फ़ाइल।
शर्माजी: कहा
से
लाएगा
फ़ाइल?
चुड़ामनि: बड़े
साहब
के
टेबल
से।
शर्माजी: तुम्हे
पता
था,
फ़ाइल
साहब
के
टेबल
पर
हैं?
चुड़ामनि: नहीं,
आप
ही
ने
तो
अभी
बोला
था
ना
की
फ़ाइल
साहब
के
टेबल
पर
हैं।
शर्माजी: उफ्फ!
जाओ
देख
लो
और
मिले
तो
ले
आओ।
जल्दी!
(दरवाजे़ से
आवाज
आती
है)
रघुराम
पिऊन:
सरजी,
क्या
मैं
अन्दर
आ
सकता
हूं?
ये
मिठाई
का
डब्बा
आपके
लिए
इंजीनियरिंग कालेज के प्रिंसिपल अहमदजी
ने
भेजा
है।
शर्माजी: प्रिंसिपल साहब
को
बोल
देना
आर्डर
का
कॉपी
कल
मिल
जाएगा।
रघुराम
पिऊन:
तो
फिर
मिठाई
का
डब्बा
कल
लेकर
आऊं?
शर्माजी: (मिठाई
का
डब्बा
रघुराम
के
हाथ
से
छीनते
हुए)
मिठाई
का
डब्बा
कहां
लिए
जा
रहे
हो
बबुआ?!
फ़ाइल
मैंने
आगे
कर
दिया।
प्रिंसिपल साहब
को
बताना
पर्मिशन का
कापी
मैं
कल
स्वयं
लेके
आऊंगा।
रघुराम
पिऊन:
ठीक
है
सर।
(रघुराम का
प्रस्थान)
(चुड़ामनि का
फ़ाइल
हाथ
में
लिए
पुन:
प्रवेश)
शर्माजी: देखा,
आखिरकार फ़ाइल
मिल
ही
गई
और
मिठाई
का
डब्बा
भी।
क्या
होगा
इस
देश
का
भविष्य?
ये
कालेज
का
प्रिंसिपल होते
हुए
भी,
अपना
काम
निकलवाने के लिए
मिठाई
का
डब्बा
देता
है!
चुड़ामनि: लेकिन
सर,
मिठाई
का
डब्बा
तो
आप
ही
ने,
सामने
से
मांगा
था
ना?
शर्माजी: क्या???
(बेकग्राउन्ड पे
गाना
बजेगा
और
गाना
खत्म
होते
ही
अगला
दृश्य
शुरू
होगा)
हम
लोगों
को
समझ
सको
तो
समझो
दिलबर
जानी,
जितना
भी
तुम
समझोगे
उतनी
होगी
हैरानी.......
द्वितीय दृश्य:
(शहर के
किसी
व्यस्त
रोड
का
दृश्य।
पुलिस
इंस्पेक्टर चौहान
सीटी
बजाकर
स्कुटर
पर
सवार
शर्माजी और
चुड़ामनि को
रोकता
है।
पुलिस
इंस्पेक्टर चौहान:
हेलमेट
कहां
है?
शर्माजी: ( मोबाइल
जेब
में
रखते
हुए)
सर,
थोड़ा
अत्यावश्यक काम
था।
जल्दबाज़ी मे
भूल
गया।
पुलिस
इंस्पेक्टर चौहान:
उपर
से,
रनिंग
में
मोबाइल
पर
बात
भी
कर
रहे
थे।
तावड़े,
इनका
दो
दो
चालान
काटो।
तावड़े:
(चालान
का
बुक
जेब
से
और
कान
से
पेन
निकालते हुए)
हो
सर!
शर्माजी: सर,
बोला
ना
इमरजेंसी था।
इसलिए
फोन
चालू
था।
वैसे
मैं
हमेशा
हेलमेट
पहनता
ही
हूं।
पुलिस
इंस्पेक्टर चौहान:
हर
बाइक
वाला
यही
बोलता
है।
बाइक
साइड
में
लीजिये
और
लाइसेंस दिखाईए।
शर्माजी: छोड़िये ना
सर,
गलती
से
मिस्टेक हो
गई।
पुलिस
इंस्पेक्टर चौहान:
नहीं!
चालान
तो
बनगा।
तावड़े!
शर्माजी: सर,
ये
लिजिये। (पुलिस
इंस्पेक्टर चौहान
के
जेब
पर
रूपया
रखते
हुए)
बात
को
यही
पर...रफा दफा कर
दिजिये
सर
जी।
(पुलिस इंस्पेक्टर चौहान
और
सिपाही
तावड़े,
खुशी
खुशी
सीटी
बजाते
हुए
निकल
जाएंगे)
शर्माजी: देखा
चुड़ामनि, हमारे
देश
की
हालत।
सारे
के
सारे
लोग
भ्रष्ट
और
बिकाऊ
हैं।
चुड़ामनि: लेकिन
सर,
रिशवत
तो
आप
ही
ने
उनको
दिया।
शर्माजी: क्या???
(बेकग्राउन्ड पे
गाना
बजेगा
और
गाना
खत्म
होते
ही
अगला
दृश्य
शुरू
होगा)
हम
लोगों
को
समझ
सको
तो
समझो
दिलबर
जानी,
जितना
भी
तुम
समझोगे
उतनी
होगी
हैरानी.......
तृतीय दृश्य:
(इंजीनियरिंग कालेज
के
प्रिंसिपल के
केबिन
में
पिऊन
का
प्रवेश)
रघुराम
पिऊन:
सर,
मिठाई
का
डब्बा
दे
आया।
प्रिंसिपल: पर्मिशन की
कापी
मिली?
रघुराम
पिऊन:
नहीं,
कल
देंगे।
काल
अधिकारी जी
स्वयं
आकर
दे
जायेंगे।
प्रिंसिपल: देखा
रघुराम,
ये
अधिकारी कितना
लालची
और
गिरा
हुआ
है।
मिठाई
का
डब्बा
मिलते
ही
पालतू
बन
गया।
रघुराम
पिऊन:
लेकिन
सर,
मिठाई
का
डब्बा
तो
आप
ही
ने
तो,
सामने
से
दिया
था?
प्रिंसिपल: क्या??
(बोखलाहट से)
तू
जा।
जा
मेरा
कार
साफ़
कर!
एकदम
चमकना
चाहिए,
नहीं
तो
आज
तेरी
ख़ैर
नहीं।
(रघुराम पिऊन
का
प्रस्थान और
साथ
साथ
सिपाही
तावड़े
ओर
पुलिस
इंस्पेक्टर चौहान
का
प्रिंसिपल साहब
के
केबिन
में
प्रवेश)
पुलिस
इंस्पेक्टर चौहान:
नमस्कार सर।
प्रिंसिपल: हां
जी,
बताइए
दारोगा
जी
कैसे
अाना
हुआ?
पुलिस
इंस्पेक्टर चौहान:
सर,
मेरा
बेटे
को
इस
साल
एडमिशन
दिलाना
था...
प्रिंसिपल: लेकिन
एडमिशन
प्रोसेस तो
खत्म
हो
गया।
एक
भी
खाली
सीट
नहीं
है
अभी।
पुलिस
इंस्पेक्टर चौहान:
सर,
आप
के
हाथों
को
क्या
हुआ?
प्रिंसिपल: क्या!
क्या
हुआ
मेरे
हाथों
को?!
पुलिस
इंस्पेक्टर चौहान:
आपका
हाथ
तो
हमेशा
टेबल
के
नीचे
ही
रहते
हैं...
प्रिंसिपल: दारोगा
जी
आप
भी
ना
अच्छा
मज़ाक
कर
लेते
हैं।
पुलिस
इंस्पेक्टर चौहान:
सर,
वह
सब
मज़ाक-वजाक छोड़िये! आपके
लिए
दो
किलो
मिठाई
का
डब्बा
लाया
हूं।
(तावड़े के
हाथ
से
मिठाई
का
डब्बे
लेकर
प्रिंसिपल अहमद
को
देते
है।)
पुलिस
इंस्पेक्टर चौहान:
पिछले
बार
मेरे
बड़े
बेटे
की
तरह,
छोटे
बेटे
का
भी
एडमिशन
हो
जाना
चाहिए।
(मिठाई का
डब्बा
लेकर
ड्रावर
में
रखते
हुए।)
प्रिंसिपल: ठीक
है
आपका
काम
हो
जाएगा।
लेकिन
दो
किलों
मिठाई
नहीं,
तीन
किलो
देना
पड़ेगा। बोलिए
मंज़ूर?
(इंस्पेक्टर सर
खुजलाते हुए)
पुलिस
इंस्पेक्टर चौहान:
ठीक
है
सर।
अभी
ये
रख
लिजिए।
एक
किलो
कल
लेकर
आऊंगा।
जय
राम
जी
की!
(इंस्पेक्टर चौहान
और
तावड़े
कैबिन
से
बहार
निकल
के)
पुलिस
इंस्पेक्टर चौहान:
देखा
तावड़े,
सीट
उपलब्ध
नहीं
है
बोल
रहा
था।
मिठाई
का
नाम
सुनते
ही,
सीट
निकल
आया।
देश
का
शिक्षा
विभाग
भी
गया
काम
से!
क्या
होगा
इस
देश
का?
तावड़े:
क्यों,
क्या
हुआ
देश
का?
पुलिस
इंस्पेक्टर चौहान:
पूछ
रहा
है
या
बता
रहा
है?!
देखा
नहीं
ये
प्रिंसिपल का
बच्चा,
कितना
भ्रष्ट
और
ऊपर
से
इतना
लालची
भी
हैं।
तावड़े:
लेकिन
मिठाई
का
डब्बा
का
आफर
तो
आप
ही
ने
दिया
था
ना,
सर
जी?
पुलिस
इंस्पेक्टर चौहान:
क्या???
(बेकग्राउन्ड पे
गाना
बजेगा
और
गाना
खत्म
होते
ही
अगला
दृश्य
शुरू
होगा)
हम
लोगों
को
समझ
सको
तो,
हम
लोगों
को
समझ
सको
तो
समझो
दिलबर
जानी
जितना
भी
तुम
समझोगे
उतनी
होगी
हैरानी.......
चतुर्थ दृश्य:
(प्रिंसिपल साहब
अपने
कैबिन
में
बेठे
मोबाइल
पर
मेसेज
देख
रहे
है।
तभी
मोबाइल
बजता
है
और
फोन
उठाते
हैं।)
प्रिंसिपल: (फोन
पे)
बोलो
बेलग़ाम...मेरा
मतलब!
बोलो
बेग़म।
(हैरान होकर)
क्या?!
क्या?!
सारे
रुपैये?
सारे
के
सारे
ज़ेवर
लूट
लिए?!
या
अल्लाह!
मेरी
सारी
मेहनत
की
कमाई
लूट
कर
लें
गया।
मैं
तो
बर्बाद
हो
गया।
क्या?!
तुमने
कार
का
नंबर
नोट
किया
था?
ठीक
है
मुझे
व्हाट्सैप करो।
मै
पुलिस
स्टेशन
जाता
हूं।
(भागते हुए
कैबिन
से
निकल
जाएंगे।)
(बेकग्राउन्ड पे
गाना
बजेगा
और
गाना
खत्म
होते
ही
अगला
दृश्य
शुरू
होगा)
हम
लोगों
को
समझ
सको
तो,
हम
लोगों
को
समझ
सको
तो
समझो
दिलबर
जानी
जितना
भी
तुम
समझोगे
उतनी
होगी
हैरानी.......
पंचम दृश्य:
(पुलिस स्टेशन
में
इंस्पेक्टर चौहान
और
सिपाही
तावड़े
दोनों
अपने
मोबाइल
पर
मग्न।)
पुलिस
इंस्पेक्टर चौहान:
तावड़े,
फेसबुक
पे
फोटो
कैसे
अपलोड
करते
हो?
तावड़े:
एकदम
आसान
हैं
साहब।
राइट
क्लिक
करके
'एफ"
के
सिम्बल
पे
...
(भागते हुए
प्रिंसिपल का
प्रवेश)
प्रिंसिपल: मेरा
रूपया
लूट
लिया!
मैं
तो
बर्बाद
हो
गया!
पुलिस
इंस्पेक्टर चौहान:
क्या
हुआ
प्रिंसिपल साहब?
प्रिंसिपल: मेरा
सारा
रुपैया,
सारे
के
सारे
ज़ेवर
लूट
लिए।
मेरी
पूरी
जि़दंगी की
कमाई
लुटेरो
न
लूट
ली।
तावड़े:
हो
साहेब,
रकम
कितना
था?
प्रिंसिपल: एक
करोड़
नकद
और
एक
करोड़
का
ज़ेवर।
पुलिस
इंस्पेक्टर चौहान:
इतना
सारा
कैश,
घर
मैं
क्यु
रखा
था?!
प्रिंसिपल: सोचा
था
अगली
नोटबन्दी आने
में
काफ़ी
समय
लगेगा।
पुलिस
इंस्पेक्टर चौहान:
आपको
इस
हालत
में
भी
मज़ाक
सुझ
रहा
हैं?!
प्रिंसिपल: मज़ाक
नहीं
तो
और
क्या
करु!
मज़ाक
तो
आप
कर
रहे
हैं
दारोगा
जी...इस तरह की
कमाई
का
पैसा
भला
बैंक
में
कैसे
रखते?!
पुलिस
इंस्पेक्टर चौहान:
हां
में
समझ
गया।
तावड़े,
प्रिंसिपल साहब
का
रिपोर्ट दर्ज
करो।
प्रिंसिपल: इंस्पेक्टर साहब,
ये
लिजिए
मारुति
वैन
का
नंबर,
जिसमें
लूटेरे
आये
थे।
आप
अभी
के
अभी
सारे
शहर
पर
नाकाबंदी कर
दे
तो
लुटेरो
को
रंगे
हाथ
पकड़
सकते
है।
रिपोर्ट बाद
में
लिख
लिजिएगा। प्लीज़
ज़ल्दी
कीजिये,
नहीं
तो
लुटेरे
निकल
जायेंगे।
पुलिस
इंस्पेक्टर चौहान:
एक
काम
कीजिए,
आप
हमें
दस
मिठाई
के
डब्बे
दे
दीजिये,
हम
भी
'अभी
के
अभी'
कारवाई
शुरू
कर
देते
हैं।
प्रिंसिपल: मिठाई
का
डब्बा?
लेकिन,
अभी
मेरे
पास
देने
के
लिऐ
कुछ
भी
नहीं
है।
तावड़े:
ठीक
हैं,
अभी
रिपोर्ट लिख
लेते
हैं
और
उसके
बाद
केस
की
छान-
बीन
शुरू
करंगे।
प्रिंसिपल: दारोगा
जी,
ये
आप
क्या
कर
रहे
हैं?
आप
लोग
ऐसा
करेंगे
तो
लुटेरे
माल
समेत,
हाथ
से
निकल
जाएंगे। मैं
तो
हमेशा
के
लिए
कंगाल
बन
जाउंगा।
पुलिस
इंस्पेक्टर चौहान:
सॉरी
सर,
मिठाई
के
डब्बो
केे
बिना
कुछ
करना
मुश्किल है।
प्रिंसिपल: प्लीज़,
दारोगा
जी
ऐसा
मत
कहिए।
पुलिस
इंस्पेक्टर चौहान:
ये
तो
आप
ही
ने
सिखाया
था
सरजी।
इसलिए
मुझे
बहुत
खेद
है।
अब
आप
हमें
क्षमा
करें।
(प्रिंसिपल भावनाओं में
बहकर।)
प्रिंसिपल: दरअसल
आप
सभी
हमें
भी
माफ़
करें।
उम्र
भर
हम
मिठाई
का
डब्बा
लोगों
से
लेते
रहे,
पर
कभी
ये
नहीं
सोचा
की
लोग
कितने
मजबूरी
में
यह
देते
हैं।
लेन
देन
की
इस
खेल
में,
भ्रष्टाचार एक
दोहरावदार चक्र
की
तरह
बन
गया।
भ्रष्टाचार के
इस
भंवर में हम सभी
फंसे
हुए
हैं।
हर
एक
भ्रष्ट
व्याक्ति को
किसी
दूसरे
व्यक्ति का
भ्रष्ट
होना
नजर
तो
आता
है,
परंतु
स्वयं
का
अनदेखी
करते
हैं।
यह सोच का सिलसिला एक बड़ा कारण है कि भ्रष्टाचार के बड़े से बड़े मामले आज किसी को भी शर्मिदा नहीं करते। परंतु मैं आज शर्मिंदा हूं। (दर्शक को संबोधित करते हुए) आज, अभी इसी वक्त, कसम खाता हूं कि, मैं आइंदा कभी भ्रष्टाचार की कड़ी नही बनूंगा, मिठाई का डब्बा ना किसी से लेंगे या ना किसी को देंगे। जय हिन्द।
घोषक:
नमस्कार।
जिस प्रकार पानी में तैरती मछली, कब दो बुंद पानी पी लेती है पता ही नही चलता है, उसी प्रकार लोग जाने अंजाने में भ्रष्टाचार का चक्रव्यूह में फंस जाते है और यह शृंखला की कड़ी बन जाते हैं। कभी स्वंय को हालातों की शिकार और कभी शिकारी के भुमिका पे आ जाना, आखिरकार भ्रष्टाचार के इस दोतरफा कोलाहल का सच को समझना होगा और ये पुनरावृत्ति प्रक्रिया के सिलसिले की रोकना होगा। समाज के हर एक व्यक्ति को गंभीरता से अपनी आवाज को बुलंद करना है तभी भ्रष्टाचार का सिलसिला खत्म होगा। क्योंकि इससे निपटने के लिए कोलाहल नहीं, हर एक नागरिक का समर्पित प्रयत्न और जागरूकता की दरकार है। जय हिन्द।
(बैकग्राउन्ड में
गाना
बजेगा)
हम
लोगों
को
समझ
सको
तो,
हम
लोगों
को
समझ
सको
तो
समझो
दिलबर
जानी
जितना
भी
तुम
समझोगे
उतनी
होगी
हैरानी……..
(समाप्त)
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