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भ्रष्टाचार का चक्रव्यूह - एक नाटक

  भ्रष्टाचार का चक्रव्यूह - एक नाटक     रचना : संजीव पी मजुमदार उप - महा प्रवंधक ( उत्पादन ) मुख्य प्रभारी , कृत्रिम उत्थोलन विभाग , राजामुन्द्री परिसम्पति।       घोषक : नमस्कार। भ्रष्टाचार एक विश्वव्यापी तथा परंपरागत समस्या है। चाणक्य का कहना था ," कर्मचारियों द्वारा सार्वजनिक धन का दूरुपयोग ना करना उसी तरह असंभव है , जिस तरह की जीभ पर रखे शहद को ना चखना। " आइये आज हम देखते हैं कि किस तरह से भ्रष्टाचार , एक संक्रामक व्याधि की तरह समाज के अधिकांश भाग को अपनी चपेट में ले चुकी है।   ( बेकग्राउन्ड में गाना बजेगा और गाना खत्म होते ही मंच पर प्रथम दृश्य शुरू होगा। )      हम लोगों को समझ सको तो समझो दिलबर जानी , जितना भी तुम समझोगे उतनी होगी हैरानी। अपनी छतरी तुमको दे दे कभी जो बरसे पानी , कभी नए पैकट में बेचे तुमको चीज़ पुरानी। फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी .....   प्रथम दृश्य :   ...